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किन सभ्यताओं के चलते शुरू हुआ जलाने तथा दफनाने का दौर?

 


जिसने जन्म लिया है, उसका मरना भी निश्चित है, क्योंकि मृत्यु एक परम सत्य है। मृत्यु हो जाने के बाद इंसान के धर्म के अनुसार उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार किसी सभ्यता के भौगोलिक क्षेत्र पर भी निर्भर करता है। उदाहरणस्वरूप, प्राचीन काल से भारत में हिन्दुओं द्वारा किए जाने वाले दाह संस्कार का मुख्य कारण इस क्षेत्र में पाए जाने वाले जंगलों में मिलने वाली लकड़ी की बहुलता पर निर्भर रहा है। इसी प्रकार कम वनस्पति वाले क्षेत्रों जैसे कि रेगिस्तानी सभ्यताओं इराक, ईरान, अरब इत्यादि में मृतकों को जमीन में दफनाने का तरीका इस्तेमाल में लाया गया। यदि हम वर्तमान की बात करें, तो किसी धर्म में अंतिम संस्कार के रूप में इंसान के शव को जला दिया जाता है, और किसी धर्म में उसे दफना दिया जाता है। आज हम आपको बताते हैं कि किस सभ्यता में शुरू हुआ जलाने और दफनाने का दौर।

सबसे पहले मिस्त्र सभ्यता के चलते दफनाने का दौर शुरू हुआ। इस सभ्यता के दौरान मृत शरीर को ममी बनाकर (कपड़े की पट्टियों से लपेटकर) एक संदूक में रख दिया जाता था। इसके बाद संदूक को जमीन में दफना दिया जाता था। इस संदूक में उस व्यक्ति की पसंद की वस्तुएं रखने की भी प्रथा थी। इस सभ्यता के लोगों के अनुसार मृत शरीर को दफनाना सबसे सुरक्षित तरीका बताया गया। उनके अनुसार मृत शरीर को दफनाने से शरीर धीरे धीरे मिट्टी में विलीन होकर प्राकृतिक रूप से खत्म हो जाता है। इससे तो वातावरण को नुकसान पहुँचता है और ही प्रदुषण फैलता है। वर्तमान समय में शव को संदूक में रखने के बजाय सीधे ही दफनाने की प्रथा है।

इस सभ्यता के बाद यूनानी और रोमन सभ्यताओं का दौर शुरू हुआ। इन सभ्यताओं के लोग मृत शरीर को दफनाने के बजाय उसे जलाने की प्रथा का पालन करने लगे। हालाँकि इस्लाम धर्म ने जलाने की प्रथा का बहिष्कार किया। लेकिन हिन्दू धर्म में आज भी जलाने की प्रथा का पालन किया जाता है। हिन्दू धर्म में अग्नि को देवता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इस धर्म में यज्ञ, हवन, विवाह तथा मृत्यु के समय अग्नि का बेहद महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि अग्नि द्वारा दाह संस्कार करने से व्यक्ति की देह पंचतत्व में पूर्णत: लीन हो जाती है। हिन्दू धर्म के साथ साथ सिख तथा जैन धर्म में भी जलाने की प्रथा का पालन किया जाता है।

हिंदुओं में जलाने के साथ साथ दफनाने की परंपरा भी प्रचलित है। हिंदुओं के कई समाज ऐसे हैं जो अपने मृतकों को दफनाते हैं। उदाहरण के लिए गोसाईं, नाथ तथा बैरागी समाज के लोग अपने मृतकों को समाधि देते हैं। इसके अलावा हिंदुओं में बच्चों को जलाए जाने के बजाय दफनाए जाने का प्रचलन है।

जलाने तथा दफनाने के अलावा भी कुछ प्रथाएं हैं जो प्रचलित हैं। इंका सभ्यता के चलते बर्फ तथा पहाड़ी क्षेत्रों में समतल जगह की कमी के कारण गुफाओं तथा खोह में अपने मृतकों का अंतिम स्थल बनाया गया। साथ ही दक्षिण अमेरिका की कई सभ्यताओं द्वारा अधिक जलराशि नदियों के प्रचुर बहाव के क्षेत्रों में मृतकों को जल में प्रवाहित कर उनका अंतिम संस्कार किया जाता रहा है।

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